डेस्क: सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) की 153वीं बटालियन के जवानों ने बंगाल के उत्तर 24 परगना जिले में भारत-बांग्लादेश अंतरराष्ट्रीय सीमा के पास वन्य जीवों की तस्करी को नाकाम करते हुए दुर्लभ प्रजाति की एक टोके गेको छिपकली के साथ एक तस्कर को शनिवार को रंगे हाथों गिरफ्तार किया। ये छिपकली बांग्लादेश से भारत में बीएसएफ की सीमा चौकी पानीतार के इलाके से तस्करी करके लाई जा रही थी।
अधिकारियों ने बताया कि यह बेहद ही बेशकीमती छिपकली मानी जाती है और विदेशों में इसकी काफी मांग है। बीएसएफ के दक्षिण बंगाल फ्रंटियर की ओर से जारी बयान में बताया गया कि एक विश्वनीय सूचना पर कार्य करते हुए 153वीं वाहिनी के जवानों ने पानीतार सीमा चौकी क्षेत्र में सीमा के पास सुबह घात लगाया। उस दौरान एक संदिग्ध व्यक्ति की हरकत को देखा, जो एक छोटे बैग के साथ विद्याधारी नाला से भारतीय क्षेत्र में घुसने का प्रयास कर रहा था।
जब घात पार्टी ने चुनौती दी तो तस्कर ने वापस बांग्लादेश की तरफ भागने का प्रयास किया लेकिन पहले से ही चौकस जवानों ने उसे बैग के साथ धर दबोचा। बैग की तलाशी में दुर्लभ प्रजाति की एक टोके गेको छिपकली मिली जिसे तक्षक छिपकली के नाम से भी जाना जाता है। इस छिपकली की विशेषता यह है कि यह अपना रंग बदलती रहती है। पकड़े गए तस्कर की पहचान जुगल घोष (34), गांव- डाकघर – तारकेश्वर, जिला -हुगली (पश्चिम बंगाल) के रूप में हुई है।
गुजरात में करता था मजदूरी का काम, करोना महामारी में घर आने पर करने लगा तस्करी
वहीं, प्रारंभिक पूछताछ में तस्कर जुगल घोष ने बीएसएफ को बताया कि वह राजकोट, गुजरात मे मजदूरी का कार्य करता था। लेकिन करोना महामारी के कारण काम नहीं मिलने से वापस घर आ गया तथा पिछले कुछ दिनों से वह तस्करी में शामिल है। आगे उसने बताया कि उसे यह छिपकली शबीर नाम के व्यक्ति से मिला था जोकि भारत- बांग्लादेश सीमा के पास खोलापता, जिला उत्तर 24 परगना का रहने वाला है।
शबीर इसे बांग्लादेश से लाया था। आगे वह इसे नदिया जिला निवासी एक अन्य तस्कर नजरुल को देने जा रहा था, लेकिन जैसे ही वह विधाधारी नाले के पास पहुंचा तो बीएसएफ के जवानों ने उसे पकड़ लिया। जब्त छिपकली तथा तस्कर को आगे की कानूनी कार्यवाही के लिए बशीरहाट पुलिस स्टेशन को सौंप दिया गया है।
बीएसएफ कमांडेंट ने जवानों की थपथपाई पीठ
इधर, 153वीं बटालियन के कमांडेंट जवाहर सिंह नेगी ने इस सफलता पर खुशी जाहिर करते हुए अपने जवानों की पीठ थपथपाई। उन्होंने कहा कि यह केवल ड्यूटी पर जवानों द्वारा प्रदर्शित सतर्कता के कारण ही संभव हो सका है।
टोके गेको छिपकली से बनाई जाती है कई प्रकार की दवा
अधिकारियों ने बताया कि टोके गेको छिपकली एक दुर्लभ और लुप्त प्रजाति की है। ये छिपकलियां पेड़ पर रहती हैं और एशिया तथा प्रायद्वीप के कुछ हिस्सों जैसे इंडोनेशिया, बांग्लादेश, पूर्वोत्तर भारत, फिलीपींस तथा नेपाल में ही पाई जाती हैं। इस छिपकली का इस्तेमाल मुखयत: मर्दानगी बढ़ाने वाली दवा के अलावा डायबिटीज, एड्स और कैंसर आदि की दवा बनाने में किया जाता है।भारत के रास्ते दक्षिण- पूर्व एशियाई देशों में इसकी अवैध तस्करी की जाती है, जहां इसकी बहुत मांग है। वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत इन दुर्लभ प्रजाति के जीवों को रखना या इनका व्यापार करना अवैध है।