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नेताजी के ‘मास्टर महाशय’ और उनकी ‘अग्निकन्याओं’ की कहानी, जब कलकत्ता में चली गोलियों की गूंज पहुंची दुनिया तक

डेस्क: आज हम आपको  नेताजी सुभाष चंद्र बोस के गुरु ‘मास्टर महाशय’ बेनी माधव दास और उनकी अग्निकन्याओं के बारे में बतायेंगे. उनकी पत्नी सरला देवी, जिन्होंने न सिर्फ अपनी कोख से अग्निकन्याएं पैदा की, बल्कि अपनी संस्था ‘सरला पुण्याश्रम’ से देश के लिए कई वीरांगनाएं तैयार की. उनकी बेटियां कल्याणी दास (भट्टाचार्य) और वीणा दास (भौमिक) वह अग्निकन्याएं थीं, जिनके ताप से ब्रिटेन में बैठे हुक्मरानों के पसीने छूट गये थे.

भरी सभा में ब्रिटिश गवर्नर पर चलायीं गोलियां

6 फरवरी 1932 को कलकत्ता विश्वविद्यालय का दीक्षांत समारोह चल रहा था. बंगाल के गवर्नर व ऑल इंग्लैंड क्रिकेट टीम के कप्तान स्टेनली जैक्सन (क्रिकेट प्रेमियों के लिए ‘जैकर्स’) मंच पर पहुंचे. भाषण देना शुरू किया, तभी एक के बाद एक पांच गोलियां चलीं, एक भी गोली लगी नहीं, लेकिन पहली गोली जैक्सन के कान के पास से गुजरी. जैक्सन नीचे गिर गया और काफी देर तक सुन्न रह गया. गोलियां मंच के ठीक बगल में रिवॉल्वर ताने खड़ी 21 वर्षीया वीणा दास ने चलायी थी. वीणा गिरफ्तार कर ली गयीं.

पूरी दुनिया में गूंजी गोलियों की आवाज (फोटो) गोली चलने की यह आवाज मानो पूरी दुनिया में गूंजीं. सभी अंतर्राष्ट्रीय अखबारों में यह घटना हेडलाइन बनी. एक युवती के साहस ने ब्रिटिश सरकार को हिला दिया. दरअसल, कलकत्ता के ‘बेथून कॉलेज’ में पढ़ते हुए 1928 में साइमन कमीशन के बहिष्कार के समय वीणा ने छात्राओं के साथ धरना दिया था. इसके बाद ‘युगांतर’ दल के क्रांतिकारियों के संपर्क में आयीं. उन दिनों क्रांतिकारी अंग्रेज अधिकारियों को गोली का निशाना बना कर यह संदेश देना चाहते थे कि भारतीय उनसे कितनी नफरत करते हैं. वीणा दास ने भी यही किया. उन पर मुकदमा चला और नौ साल के कठोर कारावास की सजा हुई.

कलकत्ता हाइकोर्ट में दिया ऐतिहासिक बयान

मुकदमा चलने के दौरान उन्होंने कलकत्ता हाइकोर्ट में ऐतिहासिक बयान दिया. उन्होंने कहा, “मेरा मकसद मरना था और मैं गर्व के साथ मरना चाहती थी. इस सरकार के खिलाफ लड़ते हुए, जिसने मेरे देश को लगातार शर्म और दमन के गर्त में धकेल रखा है. मैंने गवर्नर को गोली मारी, अपने देशप्रेम से प्रेरित होकर…बंगाल के गवर्नर ऐसे सिस्टम का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिसने मेरे देश के 30 करोड़ लोगों को गुलाम बना रखा है.”

कभी लौ पर हाथ रख देती तो कभी चीटियों से खुद को कटवाती

मकरंद परांजपे के संस्मरण की एक समीक्षा के अनुसार, वीणा अपने साथियों के साथ भूख हड़ताल करके अपनी दर्द सहने की क्षमता को जांचती थीं. इतना ही नहीं वह कभी जहरीली चींटियों के बिल पर अपना पैर रख देती और चीटियां काटती रहती और वह उस दंश को झेलती रहती तो कभी अपनी उंगलियों को लौ पर रख देती.

बड़ी बहन कल्याणी ने भी जेल में बिताए कई वर्ष

वीणा की बड़ी बहन कल्याणी दास (मुखर्जी) भी स्वतंत्रता सेनानी रहीं. अपने स्कूल के दिनों से ही दोनों बहनों ने अंग्रेज़ों के खिलाफ होने वाली रैलियों और मोर्चों में भाग लेना शुरू कर दिया था. साल 1928 में अपनी स्कूल की शिक्षा के बाद वे छात्री संघ (महिला छात्र संघ) में शामिल हो गयीं. उस समय नेताजी सुभाष चंद्र बोस कांग्रेस में बड़ी भूमिका निभा रहे थे और नेताजी से मास्टर महाशय और उनके परिवार के सदस्यों की काफी नजदीकी थी. कल्याणी भी नेताजी से काफी प्रभावित थीं.

कल्याणी ने स्वतंत्रता आंदोलन में भागीदारी के लिए पांच साल जेल से अधिक वक्त जेल में बिताये. कल्याणी-वीणा सहित 100 छात्राओं का समूह था ‘छात्री संघ’ छात्री संघ ब्राह्म गर्ल्स स्कूल, विक्टोरिया स्कूल, बेथून कॉलेज, डायोकेसन कॉलेज और स्कॉटिश चर्च कॉलेज में पढ़ने वाली छात्राओं का समूह था. बंगाल में संचालित इस समूह में 100 सदस्य थे. सभी छात्राओं को लाठी, तलवार चलाने के साथ-साथ साइकिल और गाड़ी चलाना भी सिखाया जाता था. इस संघ में शामिल कई छात्राओं ने अपना घर भी छोड़ दिया था और सरला देवी के ‘पुण्याश्रम’ में रहने लगीं. हालांकि, यह छात्रावास बहुत सी क्रांतिकारी गतिविधियों का गढ़ भी था. यहां के भंडार घर में स्वतंत्रता सेनानियों के लिए हथियार, बम आदि छिपाये जाते थे.

वीणा को कालापानी से बचाने को रवींद्रनाथ ने भेजा टेलीग्राम

कल्याणी दास भट्टाचार्य के बेटे जय भट्टाचार्य ने एक साक्षात्कार में बताया, वीणा व कल्याणी में अद्भुत प्रेम था. वीणा ने जब गवर्नर पर गोली चलायी तो कल्याणी जेल में थीं. कल्याणी से जेल में मिल कर जब उनके पिता और भाई आते तो उनसे दीदी पर हो रहे अंग्रेजों के अत्याचार के बारे में जान कर वीणा काफी व्यथित होती थीं. गवर्नर पर गोली चलाने के पीछे यह आक्रोश भी था.

कल्याणी जब जेल से बाहर निकलीं तो रवींद्रनाथ टैगोर के पास गयीं और निवेदन किया कि कुछ करें, ताकि उनकी छोटी बहन को अंडमान (काला पानी सजा) न भेजा जाये. गुरुदेव ने तत्काल लंदन में टेलीग्राम भेजा. इसकी खबर भी अमेरिका, फ्रांस सहित अंतर्राष्ट्रीय अखबारों में छपी. फ्रांसीसी फिलोसफर रोमेन रोलैंड और गुरुदेव के शिष्य सीएफ एंड्यूज ने भी ब्रिटिश सरकार से कालापानी न भेजने का निवेदन किया. ब्रिटिश सरकार पर दबाव बना और वीणा को अंडमान नहीं भेजा गया.

सजा काट कर निकलीं तो फिर जेल में डाल दिया

1939 में वीणा सात साल की सजा काट कर जेल से बाहर निकलीं. इसके बाद महात्मा गांधी के ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन में हिस्सा लिया. 1942 में दोबारा जेल में डाल दी गयीं. जेल में मौजूद कैदियों के हक के लिए भूख हड़ताल पर बैठ गयीं. 1945 में जेल से छूटीं. उन्होंने 1947 में अपने साथी स्वतंत्रता सेनानी ज्योतिष भौमिक से शादी की.

आजाद भारत में आश्रम में बिताया जीवन

पति की मृत्यु के बाद वह कलकत्ता छोड़ कर पहले बनारस गयीं, फिर वहां से ऋषिकेश के एक छोटे से आश्रम में जाकर रहने लगीं. अपना गुजारा करने के लिए उन्होंने शिक्षिका के तौर पर काम किया और सरकार द्वारा दी जाने वाली स्वतंत्रता सेनानी पेंशन को लेने से इंकार कर दिया. देश के लिए खुद को समर्पित कर देने वाली इस वीरांगना का अंत बहुत ही दुखदपूर्ण था.

प्रोफेसर सत्यव्रत घोष ने अपने एक लेख, ‘फ्लैश बैक: वीणा दास-रीबोर्न में लिखा, “उन्होंने सड़क के किनारे अपना जीवन समाप्त किया. उनका मृत शरीर बहुत ही छिन्न-भिन्न अवस्था में था. महीनों की तलाश के बाद पता चला कि यह शव वीणा दास का है. यह सब उसी आज़ाद भारत में हुआ, जिसके लिए इस अग्नि-कन्या ने अपना सब कुछ ताक पर रख दिया था.’

मौत को लेकर नेताओं ने नहीं दिखायी गंभीरता

उनके भतीजे जय भट्टाचार्य ने तत्कालीन पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री ज्योति बसु व देश के प्रधानमंत्री राजीव गांधी से उनकी मौत के रहस्य का पता लगाने का आवेदन किया था. राजीव गांधी ने कहा था यूपी के मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी जांच करवायेंगे, लेकिन उन्होंने कुछ नहीं किया.

नेताजी के गुरु थे बेनी माधव दास

कटक के रेवेंशा कॉलेजिएट स्कूल के प्रिंसिपल थे बेनी माधव दास. नेताजी सुभाष चंद्र बोस उनको अपना गुरु मानते थे, जिसका उन्होंने अपनी पुस्तक भारत पथिक में जिक्र भी किया है. बताया जाता है कि जब नेताजी अंग्रेजों से छुप कर देश से बाहर जा रहे थे तो वह अपने गुरु का आशीर्वाद लेने भी पहुंचे थे.

दरअसल, नेताजी के पिता प्रसिद्ध बैरिस्टर थे. उन्होंने नेताजी को अंग्रेजी माध्यम के स्टूवर्ड स्कूल में डाला था, लेकिन जब उन्होंने बेनी माधव दास के बारे में सुना तो उन्होंने नेताजी का ट्रांसफर रेवेंशा कॉलेजिएट स्कूल में कर दिया. नेताजी के अंदर देशप्रेम की भावना जगाने में वेनी माधव दास का महत्वपूर्ण योगदान था. वह उन्हें मास्टर महाशय पुकारते थे. पढाई पूरी होने के बाद भी नेताजी का मास्टर महाशय व उनके परिवार से अटूट संपर्क था.

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