डेस्क: अवनि लेखरा के पिता प्रवीण जब 2015 में पहली बार उन्हें निशानेबाजी रेंज ले गए तो उनका मकसद कार दुर्घटना के अपाहिज हुई उनकी बेटी की जिंदगी से नाराजगी कम करके उसका दिल बहलाना था. उन्हें क्या पता था कि उनका यह प्रयास उनकी बेटी की जिंदगी हमेशा के लिए बदल देगा.
नाराजगी कम करने के लिए की गई पहल की परिणित आज तोक्यो पैरालम्पिक में अवनि के ऐतिहासिक स्वर्ण पदक के रूप में हुई. प्रवीण लेखरा ने बताया,‘उस दुर्घटना के पहले वह काफी सक्रिय थी और हर गतिविधि में भाग लेती थी, लेकिन उस हादसे ने उसकी जिंदगी बदल दी.’
उन्होंने कहा ,‘वह हालात से काफी खफा थी और किसी से बात नहीं करना चाहती थी. माहौल बदलने के लिए मैं उसे जगतपुरा में जेडीए निशानेबाजी रेंज ले जाता था जहां से उसे निशानेबाजी का शौक पैदा हुआ.’
अभिनव बिंद्रा कि आत्मकथा पढ़ हुई प्रेरित
उन्होंने इसके बाद अपनी बेटी को ओलंपिक चैंपियन निशानेबाज अभिनव बिंद्रा की आत्मकथा ‘अ शॉट एट हिस्ट्री : माय आब्सेसिव जर्नी टू ओलंपिक गोल्ड’ खरीद कर दी. अवनि ने किताब पढना शुरू किया और ओलंपिक में भारत के पहले व्यक्तिगत स्वर्ण पदक विजेता बिंद्रा से प्रेरित होने लगी.
शुरुआत में उसे दिक्कतें आयीं, लेकिन उनके पिता ने कहा, ‘उसके कोच ने उसका पूरा साथ दिया और वह अच्छा प्रदर्शन करने लगी. उसने राज्य स्तर पर स्वर्ण और 2015 में राष्ट्रीय स्तर पर कांस्य पदक जीता. आज उसने पैरालम्पिक में स्वर्ण जीता है. जिसकी उससे अपेक्षा की जा रही थी.’ अवनि के पदक जीतने के बाद से उनके पिता का फोन लगातार बज रहा है.