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बंगाल विधानसभा चुनाव में छोटे दलों से बढ़ रही दीदी की परेशानी

कोलकाता. विधानसभा चुनाव के पहले पश्चिम बंगाल में जहां टीएमसी के कई नेता भाजपा के नेताओं को बाहरी का कर संबोधित कर रहे हैं वहीं भाजपा के अलावा कई और अन्य राज्यों की पार्टियां बंगाल में आकर वोटों का समीकरण बनाने में जुटे हैं. एक तरफ जहां तृणमूल का कहना है कि बाहर के लोग आकर बंगाल में चुनाव लड़ रहे हैं, दूसरी तरफ उनके अपने ही पार्टी के लोग अलग होकर खुद की नई पार्टी का गठन कर रहे हैं.

आपको बता दें कि कुछ ही दिनों पहले ‘एआईएमआईएम’ के प्रमुख ओवैसी का साथ पाकर बांग्ला भाषा मुस्लिमों पर प्रभाव रखने वाले फुर्फूरा शरीफ दरगाह के पीरजादा अब्बास सिद्धकी ने तृणमूल से अलग होकर अपनी नई पार्टी का गठन किया था. उन्होंने अपनी पार्टी का नाम ‘आईएसएफ’ अर्थात ‘इंडियन सेकुलर फ्रंट’ रखा. इसी के साथ उन्होंने अलग होकर विधानसभा चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी.

ऐसे में देखना यह है कि ओवैसी-सिद्दीकी की जोड़ी से किसे नुकसान होगा और किसे फायदा. बंगाल में लड़ाई मुख्य रूप से भाजपा और तृणमूल के बीच है. लेकिन कांग्रेस और माकपा का गठबंधन इसे त्रिकोणीय रूप देने की कोशिश में जुटे हैं. ऐसे में तृणमूल को उम्मीद है कि विरोधी वोट बट जाएंगे जिससे उन्हें फायदा हो सकता है. इसी बीच झारखंड मुक्ति मोर्चा ने भी बंगाल के आदिवासी बहुलता वाले क्षेत्रों से चुनाव लड़ने का निर्णय लिया है.

झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने झाड़ग्राम में पहली चुनावी सभा की. इसी समय उन्होंने 40 सीटों पर अपना प्रत्याशी उतारने का घोषणा भी कर दिया. इसी के साथ राष्ट्रीय जनता दल, जनता दल यूनाइटेड, लोक जनशक्ति पार्टी, हिंदुस्तानी वाम मोर्चा, और बहुजन समाज पार्टी समेत शिवसेना भी बंगाल में अपना कदम रखने की तैयारी में है. देखना यह है कि छोटी-छोटी पार्टियों के आगमन से किसे नुकसान और किसे फायदा होता है.

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