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अफगानिस्तान की स्थिति देख CAA के विरोधियों के बदले बोल, कट ऑफ डेट 2014 से बढ़ाकर 2021 करने की हुई मांग

 

डेस्क: मोदी सरकार द्वारा का CAA लाने की घोषणा करने के बाद से ही देश के सभी विपक्षी दल लगातार इसका विरोध कर रहे थे। लेकिन अफगानिस्तान की स्थिति को देखते हुए अब कई लोगों को अकल आई और वह अब इसका समर्थन करने लगे। इन्हीं लोगों में से एक हैं अकाली दल के नेता और दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधन कमेटी के अध्यक्ष मनजिंदर सिंह सिरसा।

दरअसल, अफगानिस्तान में किसी भी संप्रदाय के लोग अब सुरक्षित नहीं है। इसमें सिख संप्रदाय भी शामिल है। नौबत तो यहां तक आ गई है कि वहां एक भी गुरुद्वारे के सुरक्षित ना होने के कारण पवित्र पुस्तक गुरु ग्रंथ साहिब की तीन प्रतियां भारत लाई गई है। गुरु ग्रंथ साहिब के तीन प्रतियों को दिल्ली लाने के बाद सांसद हरदीप सिंह पुरी ने इन्हें दिल्ली में प्राप्त किया। उन्होंने इन प्रतियों को अपने सिर पर रखकर नंगे पांव चले।

विरोध छोड़कर समर्थन में उतरे सिरसा

इसके बाद से ही CAA का विरोध करने वाले अकाली दल के नेता मनजिंदर सिंह सिरसा ने उसका विरोध छोड़कर इसके कट ऑफ डेट दिसंबर 2014 से बढ़ाकर 2021 तक करने की मांग की है। इनका कहना है कि CAA का कट ऑफ डेट बढ़ाने से अफगानिस्तान से भारत आने वाले सभी सिखों को यहां शांतिपूर्वक रहने का मौका मिलेगा। बता दें कि सिरसा हाल ही में किसान आंदोलन में तीन कृषि कानूनों के विरोध में काफी सक्रिय थे।

Akali-Dal-started-supporting-CAA

 

वही उनकी पार्टी के कई नेताओं का कहना है कि CAA में मुसलमानों को भी जोड़ा जाना चाहिए। उनके अनुसार कई ऐसे मुस्लिम परिवार भी हैं जिन्हें भारत की नागरिकता चाहिए। उनका कहना है कि यह देश सबका है। सभी समुदाय को यहां का हिस्सा महसूस कराने की जिम्मेदारी भारत सरकार की है। इसलिए वह लगातार भारत सरकार से CAA में मुसलमानों को भी जोड़े जाने की बात कहते आ रहे हैं।

अफगानिस्तान में सिख संप्रदाय का खात्मा

विशेषज्ञों का मानना है कि अफगानिस्तान से सिख संप्रदाय के गुरु ग्रंथ साहिब को लेकर इस तरह पलायन करने का अर्थ वहां सिख परंपरा का खात्मा है। बता दें कि इससे पहले भी पिछले साल 25 मार्च को अफगानिस्तान के गुरुद्वारे हर राय साहिब में इस्लामिक स्टेट ने हमला कर दिया था। इस दौरान 25 लोगों को अपनी जा’न गं’वानी पड़ी थी। उस वक्त भी गुरु ग्रंथ साहिब के सात प्रतियों को लेकर कई सिख भारत लौट आए थे। अब काबुल, गजनी और जलालाबाद के गुरुद्वारों में बचे अंतिम तीन प्रतियों को भी भारत ले आया गया है।

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