डेस्क: 26 अगस्त 1910 को मेसिडोनिया में जन्मी अन्येज़े गोंजा बोयाजियु को आज लोग मदर टेरेसा के नाम से जानते हैं। वह एक रोमन कैथोलिक नन थी। 1948 में उन्होंने स्वेच्छा से भारत आकर भारत की नागरिकता ले ली थी। भारत के गरीब बीमार अनाथ लोगों की मदद करने में उन्होंने अपना पूरा जीवन बिता दिया।
मदर टेरेसा ने की थी मिशनरीज ऑफ चैरिटी की स्थापना
1950 में मदर टेरेसा ने कोलकाता में मिशनरी ऑफ चैरिटी की स्थापना की थी। इस मिशनरी का मुख्य उद्देश्य गरीब बीमार, अनाथ और मरते हुए लोगों की मदद करना और उनका देखभाल करना था। लगभग दो दशकों में मदर टेरेसा भारत में काफी विख्यात हो गई। भारत के अलग-अलग इलाकों में मिशनरीज ऑफ चैरिटी का विस्तार हुआ।
123 देशों में स्थापित हुआ मिशनरीज ऑफ चैरिटी
गरीबों और बीमारों का भला करने के उद्देश्य से स्थापित किए गए मिशनरीज आफ चैरिटी का विस्तार कुल 123 देशों में हो गया। अपनी मृत्यु तक मदर टेरेसा 123 देशों के कुल 610 मिशनरीज को नियंत्रित कर रही थी। मानवता के कल्याण के लिए उनके द्वारा किए गए कार्यों के कारण उन्हें कई सम्मानों से भी सम्मानित किया गया।
1979 में मिला नोबेल शांति पुरस्कार
पूरे विश्व में शांति फैलाने के लिए उन्हें 1979 में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। भारत देश के स्वतंत्र होने के बाद पहली बार किसी भारतीय नागरिक को नोबेल पुरस्कार मिला था। बता दें कि नोबेल पुरस्कार को दुनिया का सर्वोच्च व्यक्तिगत सम्मान माना जाता है। इनके अलावा अमर्त्य सेन और कैलाश सत्यार्थी को नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। इनके अलावा भी विदेशों में रह रहे कई भारतीय नागरिकों ने भी नोबेल पुरस्कार जीता है।
क्यों दिया गया था मदर टेरेसा को “भारत रत्न”?
कई विशेषज्ञों का मानना है कि मदर टेरेसा विश्व का सर्वोच्च व्यक्तिगत सम्मान प्राप्त करने वाली स्वतंत्र भारत की पहली भारतीय नागरिक थी। शायद यह भी वजह रहा होगा कि भारत सरकार ने 1980 में मदर टेरेसा को “भारत रत्न” देने का फैसला किया। शायद भारत सरकार को यह डर था कि यदि उन्होंने ऐसा नहीं किया तो विश्व का सर्वोच्च सम्मान पाने वाले भारतीय नागरिक का भारत में उनके काम की सराहना ना होना माना जाएगा।
जबकि कई विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि उन्होंने दूसरे देश से आकर भारतीय गरीबों, बीमारों और असहाय लोगों की मदद की और उनका देखभाल किया। उनके द्वारा किए गए सभी अच्छे कामों की वजह से भारत सरकार ने 1980 में उन्हें भारत का सर्वोच्च सम्मान “भारत रत्न” से सम्मानित किया। हालांकि इस विषय में विशेषज्ञों के बीच मतभेद हैं। फिर भी उनके द्वारा किए गए अच्छे कामों को भूलाना नहीं चाहिए।