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सुल्ताना डाकू का खौफ, नजीमाबाद का किला और ‘खूनीबड़ पेड़’ की दास्तान

डेस्क: सुल्ताना डाकू का नाम आपने सुना होगा. नहीं सुना तो यह जान लीजिए कि एक जमाने में नजीमाबाद और कोटद्वार क्षेत्र में सुल्ताना डाकू का खौफ हुआ करता था. यूपी के बिजनौर से लेकर कुमायूं तक उसके दहशत में लोग जीते थे. इन इलाकों में सुल्ताना डाकू का राज चलता था. कहा जाता है कि सुल्ताना डाकू जहां भी वारदात को अंजाम देता था, वहां पहुंचने से पहले ही खबर भी भेज देता और इसके बाद वहां पहुंचता भी था और बेखौफ होकर लूटपाट करता था.
सुल्ताना डाकू नवाबों के बनाए किले में रहता था. उस किले पर सुल्ताना का कब्जा था, जिसे नजीबाबाद के नवाब नजीबुल्लाह ने बनवाया था.

जमींदार को चिट्ठी भेज कहा, मैं डाका डालने तुम्हारे घर आ रहा हूँ

लोग बताते हैं कि जिस समय सुल्ताना डाकू का कहर था. उस समय कोटद्वार भाबर क्षेत्र में एक जमींदार रहता था. उसका नाम उमराव सिंह था. उमराव सिंह सुल्ताना डाकू के रिश्तेदार भी थे.

बताया जाता है कि 1920 के करीब उस कोटद्वार भावर इलाके के जमींदार उमराव सिंह के घर एक चिट्ठी आई. वह चिट्ठी किसी और की नहीं, सुल्ताना डाकू की थी. उस चिट्ठी में सुल्ताना डाकू ने कहा था, मैं अमुक दिन इस वक्त तुम्हारे घर आऊंगा, वह भी लूटपाट करने आऊंगा और मैं जरूर आऊंगा.

उस चिट्ठी को पढ़कर जमींदार आग बबूला हो गया. उसने भी ठान लिया कि सुल्ताना को सबक सिखा कर रहेगा. उसके घर से करीब 20 किलोमीटर कोटद्वार थाना था. उसने अपने एक शागिर्द को चिट्ठी लिख कर दी और कहा कि इस चिट्ठी को थाने में जाकर कोतवाल को दे देना. कोटद्वार थाना पैदल जाने में ज्यादा समय लगता तो उमराव में अपना घोड़ा उस नौकर को दे दिया, जिस पर सवार होकर वह जल्दी से जाकर पुलिस को सूचना दे सके.

उमराव के नौकर ने पुलिस की जगह सुल्ताना को दे दी चिट्ठी

उमराव का नौकर थाने की ओर जा ही रहा था कि रास्ते में नहर के पास सुल्ताना डाकू और उसके साथी नहा रहे थे. डाकुओं की तो एक वेशभूषा होती है. उनकी वर्दी होती थी. डाकुओं की वर्दी भी पुलिस की वर्दी की तरह हुआ करती थी. सुल्ताना को घोड़े पर किसी को जाते देख संदेह हुआ. उसने उस व्यक्ति को रास्ते में रोक दिया. उसने पूछा कि भाई यह घोड़ा किसका है? यह तो किसी बड़े रसूखदार का लग रहा है और तुम तो इस घोड़े का मालिक नहीं लग रहे. तुम जरूर नौकर हो. उस नौकर ने कहा कि आपने सही पकड़ा और मुझे आपसे ही काम था. मुझे आपके पास ही पहुंचना था. हमारे मालिक ने आपको एक चिट्ठी देने के लिए कहा. दरअसल उस नौकर ने सुल्ताना डाकू को ही पुलिस वाला समझा और वह चिट्ठी दे दी और वह अपनी ड्यूटी पूरी होती समझ कर घर लौट गया.

उमराव की चिट्ठी बनी जानलेवा

उस चिट्ठी को पढ़ कर सुल्ताना भड़क गया और उसने ठान लिया कि कुछ भी हो उमराव के घर डाका जरूर डालेगा. नौकर जब उमराव के पास पहुंचा उमराव को आश्चर्य लगा कि आखिर इतना जल्दी थाने से वापस भी आ गया. उमराव ने पूछा क्या रे भाई तुम इतनी जल्दी कैसे आ गए. उसने बताया, हमें वहां थाने तक जाने की जरूरत ही नहीं पड़ी पुलिस वाले तो दुर्गापुरी के पास ही मिल गए. इतने में उमराव के घर सुल्ताना भी अपनी टोली के साथ पहुंच गया और उमराव को गोली मार दी. सुल्ताना ने उमराव को पुलिस को खबर देने की जुर्रत के लिए सबक सिखाया और उसकी जान ले ली.

उमराव की हत्या के बाद बढ़ गया सुल्ताना का खौफ

कहा जाता है कि उमराव सिंह उस क्षेत्र के विकास के लिए काफी योगदान किए थे. कई लोगों को उसने वहां बसाया था, लेकिन सुल्ताना डाकू ने उसकी सारी संपत्ति पर कब्जा कर लिया. सुल्ताना ने उमराव की हत्या कर दी, इसकी सूचना इलाके में फैलने पर लोगों में सुल्ताना का खौफ और बढ़ गया.

खूनी बड़ गॉंव, जहां बड़ के पेड़ से लोगों को मार कर लटका देता था

कहा जाता है कि भावर के खूनी बड़गांव में एक बड़ा सा पेड़ था. सुल्ताना लोगों को मार कर उसी बड़ के पेड़ पर लटका दिया करता था, ताकि लोगों में उसका डर बना रहे. इसीलिए उस गांव का नाम खूनी बड़ गांव पड़ गया, क्योंकि उस बड़ के पेड़ पर सुल्ताना लोगों को मारकर लटका दिया करता था.

अंग्रेजों के नाक में दम कर रखा था

सुल्ताना का राज उस समय था, जब देश में अंग्रेजों की हुकूमत थी. सुल्ताना को पकड़ने के लिए अंग्रेजी हुकूमत ने खूब पसीने बढ़ाएं. 1923 में 300 सिपाही और 50 घुड़सवार की फौज लेकर एक अंग्रेज पुलिस अधिकारी सुल्ताना को पकड़ने के लिए गोरखपुर से लेकर हरिद्वार के बीच कई छापेमारी की.आखिकार 14 दिसंबर 1923 को सुल्ताना नजीबाबाद जिले के जंगलों से गिरफ्तार हुआ. उसे हल्द्वानी की जेल में बंद कर दिया गया. सुल्ताना के साथ उसके साथ ही भी पकड़े गए थे. उस पर मुकदमा चला और 8 जून 1924 को जब सुल्ताना को फांसी पर लटकाया गया, तब भी वह एक शेर की तरह अंग्रेजों को घूर रहा था.

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