अभिषेक पाण्डेय,
पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में एक तरफ भाजपा और तृणमूल कांग्रेस के बीच घमासान छिड़ा हुआ है, तो दूसरी तरफ कई नई-नई पार्टियां भी बंगाल में अपना डेरा जमाने आ चुकी है. कुछ तो ममता बनर्जी की पार्टी से निकलकर ही अपनी एक नई पार्टी का गठन कर रहे हैं.
आपको बता दें कि पिछले महीने ही फुरफुरा शरीफ दरगाह के पीरजादा अब्बास सिद्धकी ने ममता बनर्जी की पार्टी से अलग होकर अपने ही एक अलग पार्टी का गठन किया. इस पार्टी का नाम उन्होंने ‘इंडियन सेकुलर फ्रंट’ रखा. कुछ दिनों पहले ही झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भी पश्चिम बंगाल के सीमावर्ती क्षेत्रों में चुनाव लड़ने का निश्चय किया था.
अब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी पश्चिम बंगाल में चुनाव लड़ने का निश्चय कर लिया है. नीतीश कुमार के पार्टी के चुनाव कमेटी के अध्यक्ष बबलू महतो ने कोलकाता में हुंकार भरते हुए कहा कि अब वह किसी भी बड़े पार्टी के सामने हाथ नहीं फैलाएंगे. अब वे बंगाल की जनता के हक में आवाज बुलंद करते रहेंगे.
साथ ही उन्होंने यह भी घोषणा की कि उत्तर बंगाल में वे अपने उम्मीदवार उतारेंगे. महतो का दावा है कि वे केवल चुनाव लड़ेंगे ही नहीं, बल्कि जीतेंगे भी. 2016 के चुनाव में भी उन्होंने पश्चिम दिनाजपुर से चुनाव लड़ा था. लेकिन उस बार वे जीत न सके. इस बार उन्होंने पूरी तैयारी के साथ चुनाव में लड़ने का निर्णय लिया है.
जब उनसे पूछा गया कि क्या वह किसी बड़े पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ेंगे? तो इस सवाल का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि बंगाल की राजनीति बिहार की राजनीति से अलग है. अगर इसकी जरूरत पड़ी तो बंगाल की जनता के हित को ध्यान में रखते हुए उस पर विचार किया जाएगा.
महतो ने यह भी कहा कि जदयू के उम्मीदवारों का प्रचार करने के लिए नीतीश कुमार स्वयं बंगाल आएंगे. जल्द ही उत्तर बंगाल में उनकी पार्टी का एक कार्यकर्ता सम्मेलन भी आयोजित होगा, जिसमें उम्मीदवारों की घोषणा की जाएगी. इसी के साथ बबलू महतो ने यह भी कहा कि अपने प्रचार में उनकी पार्टी कोलकाता से जंगलमहल तक पदयात्रा भी करेगी.
इस पद यात्रा के दौरान राजनीति को हिंसा से मुक्त करने की मांग भी करेगी. गौरतलब है कि बंगाल का चुनाव अब केवल भाजपा और तृणमूल के बीच नहीं रह गई है. इसमें कई छोटे-छोटे दलों ने हिस्सा ले लिया है. अब देखना यह है कि इन छोटे दलों के कारण किसको फायदा होता है और किसको नुकसान होता है.