डेस्क: पेंशन दायित्व के बंटवारे को लेकर झारखंड सरकार का रवैया बदला हुआ नजर आ रहा है। इस रवैये से बिहार और झारखंड सरकारों के बीच तकरार बढ़ती जा रही है। दरअसल, झारखंड पेंशन दायित्व की बकाया राशि, 950 करोड़ नहीं चुका रहा है।
यह बकाया राशि 2018-19 से लेकर 2020-21 तक 3 वित्तीय वर्षों की है जिसमें से झारखंड ने बिहार सरकार को एक पाई भी नहीं दी है। बता दें कि पेंशन की बकाया राशि को लेकर बिहार वित्त विभाग के अपर मुख्य सचिव एस सिद्धार्थ ने झारखंड वित्त विभाग के मुख्य सचिव सुखदेव सिंह को एक कड़ा पत्र लिखा है। उस पत्र में एस सिद्धार्थ ने जल्द से जल्द बिहार को पेंशन दायित्व की बकाया राशि का भुगतान करने की मांग की है।
क्यों हो रहा पेंशन को लेकर विवाद
वैसे तो यह विवाद अभी चर्चा में है लेकिन इसकी शुरुआत तभी हो गई थी जब 2000 में झारखंड को एक अलग राज्य बनाने के लिए संसद द्वारा पारित राज्य पुनर्गठन अधिनियम में 15 नवंबर 2000 तक के दायित्व के बंटवारे का फार्मूला निर्धारित किया गया था।
इस फार्मूले तहत एक प्रावधान किया गया जिस के अनुसार उस समय सरकार के सेवानिवृत्त कर्मचारियों की पेंशन राशि दोनों राज्यों के कर्मचारियों की संख्या के अनुपात में बाटा जाएगा। वैसे तो कई सालों तक झारखंड सरकार बिहार सरकार द्वारा भेजे गए पेंशन मद में होने वाले खर्चे का ब्यौरा स्वीकार कर उसका भुगतान करती रही।
लेकिन जब बकाया बढ़ने लगा तब वह आनाकानी करने लगी। इसके अलावा झारखंड के बहुत से नेताओं ने पेंशन दायित्व के बंटवारे के फार्मूले पर सवाल उठाने शुरू कर दिए। उनका कहना था कि पेंशन राशि का बंटवारा कर्मचारियों की संख्या के अनुपात की जगह आबादी के अनुपात में करना चाहिए। बता दें कि इसके लिए झारखंड सरकार सर्वोच्च न्यायालय भी गई।
किंतु सर्वोच्च न्यायालय की तरफ से ना तो कोई फैसला लिया गया और ना ही इस पर रोक लगाई गई। सर्वोच्च न्यायालय से फैसला ना मिलने के कारण केंद्रीय गृह सचिव ने बिहार और झारखंड दोनों राज्यों के मुख्य सचिवों की बैठक बुलाकर यह तय किया कि सर्वोच्च न्यायालय का फैसला आने तक पेंशन राशि का बंटवारा आबादी के अनुपात में किया जाएगा।